Wednesday, December 30, 2009

Simdega : मुहर्रम जुलूस ( वृद्धों में जोश )



निकाला गया मुहर्रम का जुलूस 

वृद्धों में भर गया था जोश

 

सिमडेगा। मुसलमानों के पवित्र त्योहार मुहर्रम पर सोमवार को जिला मुख्यालय एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में आस्था व उल्लास के साथ जुलूस निकाला गया। मैदान ए कर्बला में शहीद हुए हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाये जाने वाले इस पर्व के मौके पर शहर में निकाले गये जुलूस में सैकड़ों लोगों ने शिरकत की। जुलूस में शामिल एक अखाड़े के द्वारा बैंड बाजे द्वारा देशभक्ति गीतों की धुन बजायी जा रही थी। बैंड पर ऐ मेरे वतन के लोगों जरा याद करो कुर्बानी.. गीत से शहर का पूरा माहौल देशप्रेम के जज्बे से ओतप्रोत हो गया था। जुलूस में शामिल युवा, बजुर्ग व बच्चों ने अस्त्र-शस्त्र व लाठी के करतब पेश किये। लोगों ने एक से बढ़कर एक हैरत अंगेज कला की प्रस्तुति करके मुहर्रम जुलूस को यादगार बना दिया। इससे पूर्व शहर के विभिन्न अखाड़ों से जुलूस निकलकर इस्लामपुर स्थित हारूण रशीद चौक के पास जमा हुआ इसके बाद सभी सामूहिक रूप से नीचे बाजार होते हुए महावीर चौक पहुंचे। इस क्रम में विभिन्न संप्रदाय के लोगों ने सदभाव व भाईचारे की भावना के साथ मुहर्रम जुलूस का स्वागत किया। जुलूस में शामिल लोगों द्वारा लगाये जा रहे नारे अल्लाह हू अकबर तथा या अली से आसमान गूंज रहा था। जुलूस में विभिन्न अखाड़ों के सदस्यों द्वारा एक से बढ़कर एक करतब के साथ सुंदर तरीके से ढोल ताशे भी बजाये जा रहे थे। जुलूस में कोनमेंजरा, मतरामेटा, आजाद बस्ती, इस्लामपुर, ईदगाह मुहल्ला, खैरनटोली, नूर मुहल्ला, मुजाहिद मुहल्ला आदि अखाड़ों के लोगों ने भाग लिया।


Sunday, December 27, 2009

Simdega : हाट बाजार में बढ़ रहा है मुर्गा लड़ाई का खेल


सिमडेगा। मुण्डारी भाषा में सिम का मतलब होता है मुर्गा तथा डेगा का मतलब है गांव। इन्हीं दो शब्दों के मेल से बना है सिमडेगा, यानि मुर्गा का गांव। सदियों से इस क्षेत्र में मुर्गे की लड़ाई का आनंद क्षेत्र का आदिवासी समुदाय लेता आया है। यहां के हाट बाजार में होने वाली मुर्गा लड़ाई को देखने के लिये सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण जुटते हैं। खेल में मुर्गे की जीत हार पर पैसा लगाने की परम्परा रही है। अब यह खेल बड़े पैमाने पर चलने लगा है और कुछ लोगों का व्यवसाय बन चुका है। धंधे में हजारों रुपये दांव पर लग रहे हैं। धीरे-धीरे मुर्गा लड़ाई के खेल का स्वरूप बढ़ता जा रहा है। खेल का नशा ऐसा चढ़ा है कि शहरी क्षेत्र से भी लोग मोटरसाइकिल-कार पर सवार होकर उन हाट बाजार में पहुंचते हैं जहां मुर्गा लड़ाई पर बड़े दांव लगाये जाते हैं। कई बार मुर्गा लड़ाई के दौरान मारपीट की भी नौबत आती है। यहां उल्लेखनीय है कि दो मुर्गो को मैदान में उतारने से पहले इनके बायें पैरों पर चाकूनुमा धारदार चीज बांधी जाती है। इसी हथियार से मुर्गा अपने प्रतिद्वंदी पर वार करता है। लड़ाई में जो मुर्गा घायल होकर भाग जाता है वह मुर्गा सामने वाला ग्रामीण अपने साथ ले जाता है। इसके अलावा वहां लड़ाई देखने वाले लोगों के द्वारा लगायी गयी बाजी के अनुसार उन्हें दोहरा पैसा मिलता है। बाजार में तेजी से बढ़ रहे मुर्गा लड़ाई के खेल और इसमें लगने वाले दांव पर पुलिस प्रशासन की कोई रोक नहीं है।